Saturday, 10 December 2011

जन्मकथा - बच्चे ने पूछा माँ से, मैं कहाँ से आया माँ ?


जन्मकथा :


” बच्चे ने पूछा माँ से , मैं कहाँ से आया माँ ? “


माँ ने कहा, ” तुम मेरे जीवन के हर पल के संगी साथी हो !”


जब मैं स्वयं शिशु थी, खेलती थी गुडिया के संग , तब भी,


और जब शिवजी की पूजा किया करती थी तब भी,


आंसू और मुस्कान के बीच बालक को ,


कसकर, छाती से लिपटाए हुए , माँ ने कहा ,


” जब मैंने देवता पूजे, उस वेदिका पर तुम्ही आसीन थे ,


मेरे प्रेम , इच्छा और आशाओं में भी तुम्ही तो थे !


और नानी माँ और अम्मा की भावनाओं में भी, तुम्ही थे !


ना जाने कितने समय से तुम छिपे रहे !


हमारी कुलदेवी की पवित्र मूर्ति में ,


हमारे पुरखो की पुरानी हवेली मेँ तुम छिपे रहे !


जब मेरा यौवन पूर्ण पुष्प सा खिल उठा था,


तुम उसकी मदहोश करनेवाली मधु गँध थे !


मेरे हर अंग प्रत्यंग में तुम बसे हुए थे


तुम्ही में हरेक देवता बिराजे हुए थे


तुम, सर्वथा नवीन व प्राचीन हो !


उगते रवि की उम्र है तुम्हारी भी,


आनंद के महासिंधु की लहर पे सवार,


ब्रह्माण्ड के चिरंतन स्वप्न से ,


तुम अवतरित होकर आए थे।


अनिमेष द्रष्टि से देखकर भी


एक अद्भुत रहस्य रहे तुम !


जो मेरे होकर भी समस्त के हो,


एक आलिंगन में बध्ध , सम्बन्ध ,


मेरे अपने शिशु , आए इस जग में,


इसी कारण मैं , व्यग्र हो, रो पड़ती हूँ,


जब, तुम मुझ से, दूर हो जाते हो…


कि कहीँ, जो समष्टि का है


उसे खो ना दूँ कहीँ !


कैसे सहेज बाँध रखूँ उसे ?


किस तिलिस्मी धागे से ?

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