Saturday, 10 December 2011

जो ग़म पूछें उन्हीं से हाल


जो ग़म पूछें उन्हीं से हाल, वो कुछ यूं बताए हैं. 
जहां तुम थोक में मिलते, वहीं से ले के आए है.


बलाएं भी बिरादर इस तरह, संग राह है प्यारे,
पनाहों में पता चलता, कहर पहले से आए हैं. 


उन्हें रातों के बारे में, खुदा मालूम कुछ ना हो, 
जिन्हें लगती मुसीबत है, वो कैसे दिन बिताए हैं. 


अभी दिखता नहीं नासूर, काँटा है हिजाबों में, 
गए वो अक्स अक्सर, आईनों में चिरमिराए हैं.


इन्हीं हालात से, नाज़ुक बने हैं हाल इस माफिक,
कहीं छोटे से छोटे शब्द, बढ़ कर दिल चुभाए हैं 


बुरा ना मानना, उनको लगेगा वक़्त चलने में,
जो पिछले पाँव छालों के, चकत्ते काट लाए हैं.


वो वैसे हों न हों, जीवन उन्हें गुलज़ार रख लेगा, 
यही दुनिया है, ज़िम्मेवारियां बरगद के साए हैं. 


कभी लेकिन अचानक आप बहता है, हुआ यूं क्यूं, 
पलक भर पोंछ ले वो फिर, पलट कर मुस्कुराए हैं


अकेले गर जो होते घर, तो ढह जाते बहुत पहले, 
ये नेमत है सहन की नींव को, साथी बचाए हैं

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